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Wednesday, 22 September 2021

अशोक कुमार की आत्मा,सोंच,समझ,अनुभव,जीवन,संस्कार का आइना है उनके चित्र।

अशोक कुमार नई दिल्ली के अपने स्टूडियो/आवास में कला साधना में धुनि लगाकर रमे हैं।मूलतः पटना,बिहार में 1965 में जन्में अशोक ने देश तथा दुनियाँ का भ्रमण किया है।पटना आर्ट कॉलेज से पेंटिंग में वर्ष 1987 में डिग्री प्राप्त किया।यह विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु वर्ष 1990 में फ्रांस स्कॉलरशिप पर गए।इन्हें भारत सरकार का सीनियर फ़ेलोशिप भी मिल चुका है। फ्रांस से वापसी के बाद से यह नई दिल्ली में रहकर स्वतंत्र रूप से कला सृजन में लगे हैं।देश दुनियाँ के बड़े देशों में इनके चित्र प्रदर्शित होते रहते हैं।समय समय पर यह री-यूनियन आइसलैंड,चीन,मलेशिया,थाईलैंड जैसे देशों का भ्रमण करते रहते हैं।देश दुनियाँ की आर्ट गैलरीयों,निजी संग्रह में इनके चित्र संग्रहित हैं।अशोक कुमार हिंदुस्तान के कला जगत का  जाना माना चेहरा है।सभी इनके काम,ब्यौहार,विचार के कायल हैं।
              अपने समाज के सामाजिक,सांस्कृतिक,राजनैतिक परिवेश को अशोक ने आत्मसात किया है।समझा है।अनुभव किया है।
इन्हें अपनी मिट्टी से प्यार है।बचपन में माता पिता,परिवार,मित्रों के साथ जो प्यार मिला उसे संजों कर रखा है।श्रमजीवि परिवार से यह आते हैं।कला सृजन के प्रति इनकी रूचि माता-पिता से मिले संस्कार का प्रभाव इनके जीवन तथा कृतियों पर दिखता है।भारतीय परिवेश में हम अपने जीवन में इसका अधिक महत्व देते हैं।छोटे शहर के कलाकार को बड़े सपनों ने देश दुनियाँ के भ्रमण,आवलोकन का अवसर दिया।इन अवसरों का बखूबी अशोक ने अपने कला सृजन के लिए आजमाया है।प्रयोग किया है।
                  कला सृजन में कलाकारों के परिवेश का प्रभाव उनके चित्रों में दिखता है।बचपन से मन मस्तिष्क में संग्रहित आकार,प्रकार,आकृतियाँ कैनवास पर रूपांतरित होती हैं।हमारे परिवेश,संस्कार में जों
तीज,त्यौहार जैसे होली,दीपावली,दशहरा,छठ अदि होते हैं उसमें खिलौने,दिया,कुल्हड़,मिटटी के बाघ,हाथी,गाय, घोड़े,चिड़ियां,तितली,चूहे,मछली जैसे अनेक प्रतिरूप बनते हैं।ग्रामिण/छोटे शहरों की महिलाओं के वस्त्र,आभूषण क्रिएटिव लोगों को आकर्षित करते हैं।अशोक के चित्रों में इन आकृतियों को देखा जा सकता है।आकृति मूलक इनके चित्र भारतीय परिवेश को दर्शाता है।इनके चित्रों की रेखायें सुडौल,साफ सुथरी और निर्भीक हैं।रेखाओं की इनकी भाषा,संवाद दर्शकों तक सीधे पहुंचती है।
अशोक के चित्रों में रेखाओं का महत्वपूर्ण स्थान होता है।
           कलाकृतियों में रंगों का फैलाव,लगाने का तरीका,टेक्सचर क्रिएट कर कलाकार चित्रों में आकर्षण पैदा करता है।रंग,रेखाओं तथा ब्रश के आघात से किये गये अभ्यास तस्बीरों में विभिन्न आयाम बनते हैं।अशोक के चित्रों में बेसिक कलर्स के साथ गोल्डन,सिल्वर,रेड,ब्लू,बर्न्टसाईना के डायरेक्ट तथा सफ़ेद रंगों के मिश्रण से बने सॉफ्ट कलर्स चित्रों में खूबसूरती क्रिएट करती हैं।इनके चित्रों में सुकून,शांति दिखती है।स्त्री,पुरुष के चेहरे के भाव में सच्चाई झलकती है।रंगों का बहाव बहते झरने की मधुर संगीत की तरह ध्वनि क्रिएट करता है।चित्रों में इसे महसूस किया जा सकता है।अशोक के चित्रों में उनके शांत,सहज,सरल स्वभाव का आभास होता है।
     अशोक की आत्मा उसकी सोंच,समझ,अनुभव,उसके जीवन संस्कार का आइना है उनके चित्र।

अनिल कुमार सिन्हा
चर्चित चित्रकार,कला-लेखन।
07835847147
09431014644
नॉएडा

Monday, 20 September 2021

दृष्य कविता(Visual Poetry) है प्रयाग शुक्ला की कलाकृतियाँ।


कला-आलोचना और कविता के क्षेत्र में प्रयाग शुक्ला एक जाना माना हस्ताक्षर हैं।इन्होंने दिनमान पत्रिका के कला सम्पादक के रूप में भारतीय कला तथा कलाकारों को राष्ट्रीय पहचान दिलायी है।कला समालोचना को एक नयी दिशा दी है।कलाकृतियों को कैसे देखें,समझें यह भी बताया है।मकबुल फ़िदा हुसेन,जे.स्वामीनाथन,मंजीत बावा,हिम्मत शाह जैसे अनगिनत कलाकारों की कृतियों की समीक्षा की है।आज की पीढ़ी को भी इनका मार्गदर्शन प्राप्त है।मैं 1980 से इन्हें जानता हूँ।पटना में ग्रुप "अब" की समूह प्रदर्शनियाँ हमलोग करते थे।उसकी सूचना तथा समीक्षा मेरे सहपाठी अवधेश अमन दिनमान में लिखा करते थे।प्रयाग शुक्ल उन गतिविधियों की जानकारी दिनमान पत्रिका में प्रकाशित किया करते थे।भारतीय समकालीन कला के प्रोत्साहन,संरक्षण तथा संवर्धन में इनका अतुलनीय योगदान है।हमसभी प्रयाग शुक्ला जी का सम्मान करते हैं।
              विगत वर्ष कोरोनॉ जैसी महामारी से देश तथा दुनियाँ त्रस्त हुई।घरों में हम कैद हो गए।लोगों से मिलना जुलना बिल्कुल बंद हो गया।इस अवसर को क्रिएटिव लोगों ने बखूबी अपने सृजन के लिए उपयोगी समझा।अवसर में बदला।प्रयाग शुक्ला जी ने उस समय को चित्रों को रचने में लगाया।वर्षों से कलाकारों की संगत,सत्संग,कला पर चर्चा और प्राप्त अनुभओं को चित्रों को उकेरने में लगाया।यह एक कवि ह्रदय को प्रस्फुटित होने का सुअवसर था जो प्रयाग शुक्ला जी के चित्रों तथा रेखांकण के रूप में हमारे,आपके सामने है।मैंने जब इन चित्रों को देखा तो अपने आपको रोक नहीं पाया।सोंचा अपने विचार,भावनाओं को ब्यक्त करूँ।कलाकृतियाँ तभी तक कलाकार की होती हैं जब तक उसे पूरा न कर लिया जाय।तस्बीर पूरी हो जाने तथा प्रदर्शन के बाद आमजन की हो जाती हैं।लोग उसका आनंद लेते हैं।कला की बारीकियों को समझते हैं।चर्चा करते हैं।सृजन के दौरान कलाकार तथा कृतियों के बीच, रचने के काल में जो संघर्ष,संवाद होते हैं उसे जानते हैं।
         प्रयाग शुक्ला के सारे चित्र तथा रेखांकण  कागज़ पर उकेरे गए हैं।पेंसिल,पेस्टल,आयल,वाटर कलर,पेन एंड इंक का प्रयोग किया गया है।यह अपनी डायरी में जब भी समय मिलता पेन से रेखांकन करते रहे हैं।कही किसी यात्रा में हों जो भी खिड़की से भूदृष्य, पर्वत,पेड़,पौधे,फूल,तितली जैसी आकृतियाँ दिखी उसे अपनी डायरी में सहेज,उकेर लेते रहें हैं।इनकी रेखायें संगीतमय माहौल बनाती हैं।मानव आकृतियाँ,नाव,पेड़,पहाड़,मंदिर की सीढियाँ,गुम्बद,ध्वज, गवई जन जीवन सी आकृतियाँ रेखाओं में गति प्रदान करती हैं।मन मस्तिष्क में रचे बसे ग्रामीण परिवेश रेखाओं में झलकती हैं।इनकी निश्छल रेखायें दिलों दिमाग में सुकून,शांति प्रदान करती हैं।आनंद की अनुभूति होति है।रेखांकन चित्रों की कुंजी होती है।उसी में आगे रंग भरे जाते हैं।
           प्रत्येक कलाकार के मन,मस्तिष्क में अपने परिवेश,अनुभव,आसपास के माहौल,समय और काल में घटित घटनाओं का प्रभाव रहता है।कलाकार समय और समाज का आईना चित्रों में परोसता है।प्रयाग जी जिस परिवेश में रहते हैं उसका प्रभाव इनके चित्रों में रूपांतरित हुआ है।इनके वर्तमान के सभी चित्रों में प्रकृति की छटा पेड़,पौधे,तितली,टेबल,गमले में फूल,सीढ़ी, बादल,सूरज,चाँद जैसी आकृतियाँ प्रमुखता से चित्रित की गयी हैं।आकृतियाँ सजीव सहज और अमूर्त हैं।चित्रों में आकारों के रचने की प्रक्रिया में अपनी इच्छानुसार तोडा मरोड़ा है।पर एब्स्ट्रैक्ट नहीं है।सहज बालमन की तरह भयमुक्त होकर खेला है।अपनी कविताओं की तरह जैसे शब्द बुने हैं उसी तरह कबीर की चादर की तरह चित्रों को बुना है।
               चित्रों की रंगभाषा कलाकार की अपनी होती है।प्रयाग जी के चित्रों में रंग सारे बेसिक कलर हैं पर पेस्टल,ब्रश,तथा पेन से उसे सॉफ्ट,सिल्की,सूदिंग बनाया है।सतह पर पैदा किया गया बनावट/टेक्सचर,खुरदरापन चित्रों में भिभिन्न आयाम पैदा करता है।कवि के कोमल मन,भाव,विचार सहज ही बिना किसी लग लपेट के दर्शकों तक पहुच रहा है।
विशाल कलात्मक परिवेश का अनुभव संजोय प्रयाग जी के चित्र समाज की धरोहर है।प्रयाग शुक्ला की कलाकृतियाँ दृष्य कविता(Visual Poetry) की तरह हैं।
सूचना-Dhoomimal Gallery
 8A, कैंनाट प्लेस,नई दिल्ली में इनके चित्र 10 अक्टूबर 2021 तक प्रदर्शित रहेगी।कृपया आलोकन हेतु पधारें।

अनिल कुमार सिन्हा
चर्चित चित्रकार,कला-लेखन।
09431014644
07835847147
नॉएडा।