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विगत वर्ष कोरोनॉ जैसी महामारी से देश तथा दुनियाँ त्रस्त हुई।घरों में हम कैद हो गए।लोगों से मिलना जुलना बिल्कुल बंद हो गया।इस अवसर को क्रिएटिव लोगों ने बखूबी अपने सृजन के लिए उपयोगी समझा।अवसर में बदला।प्रयाग शुक्ला जी ने उस समय को चित्रों को रचने में लगाया।वर्षों से कलाकारों की संगत,सत्संग,कला पर चर्चा और प्राप्त अनुभओं को चित्रों को उकेरने में लगाया।यह एक कवि ह्रदय को प्रस्फुटित होने का सुअवसर था जो प्रयाग शुक्ला जी के चित्रों तथा रेखांकण के रूप में हमारे,आपके सामने है।मैंने जब इन चित्रों को देखा तो अपने आपको रोक नहीं पाया।सोंचा अपने विचार,भावनाओं को ब्यक्त करूँ।कलाकृतियाँ तभी तक कलाकार की होती हैं जब तक उसे पूरा न कर लिया जाय।तस्बीर पूरी हो जाने तथा प्रदर्शन के बाद आमजन की हो जाती हैं।लोग उसका आनंद लेते हैं।कला की बारीकियों को समझते हैं।चर्चा करते हैं।सृजन के दौरान कलाकार तथा कृतियों के बीच, रचने के काल में जो संघर्ष,संवाद होते हैं उसे जानते हैं।
प्रयाग शुक्ला के सारे चित्र तथा रेखांकण कागज़ पर उकेरे गए हैं।पेंसिल,पेस्टल,आयल,वाटर कलर,पेन एंड इंक का प्रयोग किया गया है।यह अपनी डायरी में जब भी समय मिलता पेन से रेखांकन करते रहे हैं।कही किसी यात्रा में हों जो भी खिड़की से भूदृष्य, पर्वत,पेड़,पौधे,फूल,तितली जैसी आकृतियाँ दिखी उसे अपनी डायरी में सहेज,उकेर लेते रहें हैं।इनकी रेखायें संगीतमय माहौल बनाती हैं।मानव आकृतियाँ,नाव,पेड़,पहाड़,मंदिर की सीढियाँ,गुम्बद,ध्वज, गवई जन जीवन सी आकृतियाँ रेखाओं में गति प्रदान करती हैं।मन मस्तिष्क में रचे बसे ग्रामीण परिवेश रेखाओं में झलकती हैं।इनकी निश्छल रेखायें दिलों दिमाग में सुकून,शांति प्रदान करती हैं।आनंद की अनुभूति होति है।रेखांकन चित्रों की कुंजी होती है।उसी में आगे रंग भरे जाते हैं।
प्रत्येक कलाकार के मन,मस्तिष्क में अपने परिवेश,अनुभव,आसपास के माहौल,समय और काल में घटित घटनाओं का प्रभाव रहता है।कलाकार समय और समाज का आईना चित्रों में परोसता है।प्रयाग जी जिस परिवेश में रहते हैं उसका प्रभाव इनके चित्रों में रूपांतरित हुआ है।इनके वर्तमान के सभी चित्रों में प्रकृति की छटा पेड़,पौधे,तितली,टेबल,गमले में फूल,सीढ़ी, बादल,सूरज,चाँद जैसी आकृतियाँ प्रमुखता से चित्रित की गयी हैं।आकृतियाँ सजीव सहज और अमूर्त हैं।चित्रों में आकारों के रचने की प्रक्रिया में अपनी इच्छानुसार तोडा मरोड़ा है।पर एब्स्ट्रैक्ट नहीं है।सहज बालमन की तरह भयमुक्त होकर खेला है।अपनी कविताओं की तरह जैसे शब्द बुने हैं उसी तरह कबीर की चादर की तरह चित्रों को बुना है।
चित्रों की रंगभाषा कलाकार की अपनी होती है।प्रयाग जी के चित्रों में रंग सारे बेसिक कलर हैं पर पेस्टल,ब्रश,तथा पेन से उसे सॉफ्ट,सिल्की,सूदिंग बनाया है।सतह पर पैदा किया गया बनावट/टेक्सचर,खुरदरापन चित्रों में भिभिन्न आयाम पैदा करता है।कवि के कोमल मन,भाव,विचार सहज ही बिना किसी लग लपेट के दर्शकों तक पहुच रहा है।
विशाल कलात्मक परिवेश का अनुभव संजोय प्रयाग जी के चित्र समाज की धरोहर है।प्रयाग शुक्ला की कलाकृतियाँ दृष्य कविता(Visual Poetry) की तरह हैं।
सूचना-Dhoomimal Gallery
8A, कैंनाट प्लेस,नई दिल्ली में इनके चित्र 10 अक्टूबर 2021 तक प्रदर्शित रहेगी।कृपया आलोकन हेतु पधारें।
अनिल कुमार सिन्हा
चर्चित चित्रकार,कला-लेखन।
09431014644
07835847147
नॉएडा।
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