आज का समाज नई टेक्नोलॉजी,आधुनिक सुख सुविधाओं से सम्पन्न है।विज्ञान,शोध एवं विकास का युग है।दुनियाँ चाँद,मंगल ग्रह पर पहुँच चुकी है।हर बड़े देश के पास अणु बम तथा हाईटेक आर्म्स हैं।पैसा,धन है पर भावनायें मरती जा रहीं हैं।अहंकार,इर्ष्या,नफरत का बोल बाला है।पुरातन संस्कार,सभ्यता,संस्कृति से लोग दूर होते जा रहे हैं।ताकतवर देश कमज़ोर पडोसी को धमकाता है।आक्रमण करता है।हथियारों की होड़ लगी है।मानव जीवन,प्रकृति के वज़ूद को समाप्त करने के लिए प्रयास हो रहें हैं।यह कैसा आधुनिक समाज,दुनियाँ विकसित हो रही है?दुनियाँ के देश पर्यावरण को नष्ट करते जा रहें हैं।पीने के पानी की किल्लत हो रही है।भय के माहौल में लोग जी रहे हैं।
दुनियाँ के लोग,समाज,परिवार आज के माहौल में क्या सुखी हैं?खुश हैं?सुरक्षित हैं?बड़े सवाल है।सोंचने को मजबूर करते हैं।
क्या भारतीय समाज,परिवार आज के तकनीकि बदलाव के युग में तरक़्क़ी कर रहा है?सोंचने की ज़रुरत है।जिन देशों ने अपने संस्कार,इतिहास,परम्परा को छोड़ा वह मानव मशीन के रूप में तब्दील हो रहा है।जापान एक ऐसा देश है जिसने अपने रूट्स,संस्कार को जीवित रखते हुए आधुनिक,विकसित देश बना।अपने इतिहास को सहेज कर रखा है।तकनीक के ईजाद में श्रेष्ठ देश है।
हिंदुस्तानी समाज,परिवार इकट्ठा,समूहों में रहना पसंद करता है।दादा दादी,नाना नानी,माता पिता,चाचा चाची,भाई बहन,फुआ फूफा अदि साथ रहते थे।मिलते जुलते थे।गर्मी जाड़े की छुट्टियों में पहले से घर,गाँव जाने का टिकट कटा रहता था।गर्मी के दिनों में आम खाने को मिलता था।जाड़े में भुट्टा,हराचना,होरहा अदि।बच्चे खूब आनंद करते थे।मस्ती करते थे।बड़े बुजुर्ग महिला पुरुष हंसी मजाक ख़ुशी मनाते थे।आंगन में चूल्हा जलता था।बच्चे बूढ़े साथ रोटियाँ खाते थे।अब वह माहौल एक स्वप्ना सा लगता है।हम आधुनिक बन गए है।सुख सुविधायें खूब है।वातानुकूलित कमरे है।पर गर्मियों नें छत पर खुले आसमान के नीचे सोने का जो सुख,मज़ा था वह अब शहरों में नसीब नहीं
दिन में घर की महिलायें अपने घर के आस पास,मुहल्लों में पडोसी के यहां आना जाना।मिलना जुलना बैठना।बातें करना।रविवार को छुट्टी के दिन एक दूसरे के घरों में आना जाना करती थीं।दोपहर में एक दूसरे के घर औरतें दिन में आती जाती थी वह सिलसिला क्यों समाप्त हो गया?अब तो पडोसी भी एक दूसरे को नहीं पहचानते।
नफरत के भाव टेलिविज़न,मोबाइल,नेट के ज़माने में बढ़ते जा रहे हैं।समाज हाई टेक तो हो गया पर अपने आप तक सीमित हो चुका है।बच्चे बड़े होकर बुजुर्गों,माता पिता से दूर हो रहे है।मोबाइल, इनटरनेट, सोशल साइट्स ने अपने आप में समाज को उलझा रखा है। समाजिक कार्य,सामूहिक दायित्व,गतिविधियों से हम दूर होते जा रहे है।फ्लैट्स,मुहल्लों में पडोसी को कोई नहीं पहचानता।25-30 साल पहले तक लोग मुहल्ले के कई पुश्त को लोग नाम,चेहरे से जानते,पहचानते थे।यह बदलाव क्या बता रहा है?विलासिता,शारीरिक सुख तो मिले हैं पर आत्मीयता,मानासिक शांति नहीं मिली है।यह अच्छे संकेत नहीं है।
माता,पिता बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेज कर बड़े खुश होते हैं।वही बच्चे बुढ़ापे में माँ बाप को अकेला छोड़कर विदेश में बस जाते हैं।बहुत सारे बच्चे बड़े होकर हिंदुस्तान के बड़े शहरों में बस जाते हैं।माता पिता गाँव,छोटे शहरों में अकेले पड़े हैं।बच्चे देख भाल नहीं करते।यह कैसा आधुनिक समाज है।हम कहाँ जा रहे हैं।एक घर में चार लोग हैं।सभी मोबाइल में लगे रहते हैं।कोई एक दूसरे से कुशल क्षेम भी नहीं पूछता।स्कूल,कॉलेज,ऑफिस,दोस्त,पैसा कमाना यही मकसद रह गया है आज के आधुनिक समाज का? परिवार,समाज,सामाजिक सरोकार,सहयोग सबसे मुँह मोड़ते जा रहे हैं हम।यह ठीक नहीं।नये ज़माने के साथ चलें।आधुनिक तकनीक,सुविधायें को अपनाएँ पर अपने रूट्स,जड़,मिटटी से जुड़े रहें।बच्चों में भारतीय संस्कार डालें। तकनीक और रिश्तों में सामंजस्य बिठाकर चलें।अपने धर्म, आस्था को प्यार से अपनायें।किसी को आपके ब्यौहार से कष्ट,परेशानी ना हो। पारिवारिक,सामाजिक रिश्तों में गर्मजोशी बनाये रखें। भाई चारा बना रहे।विकास को अभिशाप नहीं वरदान बनायें।जीवन का आनंद मिलेगा।समय खुशी से ऐसे कटेगा,पता ही नहीं चलेगा इतना समय कैसे बीत गया।
प्रेम,दया,करूणा,क्षमा के भाव को दिल में मरने ना दें।दुनियाँ प्रेम से चलेगी,नफरत से नहीं।🌷.
अनिल कुमार सिन्हा
चर्चित चित्रकार,लेखक।
*विचार
अनिल कुमार सिन्हा-रेखा चित्र।
साईज़-12"×12"
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