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Monday, 3 January 2022

वर्ष 1980 ग्रुप "अब" बिहार समसामयिक कला आंदोलन का सूत्रधार,कलाकारों का समूह।

ग्रुप 'अब" पटना आर्ट कॉलेज के पूर्व छात्रों का समूह था जिसने 1980-81 में बिहार के क्रिएटिव कलाकरों को भारतीय समकालीन कला से जुड़ने को प्रेरित किया।संगठित होकर अपने बलबूते पर भागीरथी प्रयास किया।सीमित साधन में साहस कर राज्य में तथा राज्य से बाहर कला प्रदर्शनी करना शुरू किया। 
मैं 1969 में आर्ट कॉलेज ज्वाइन किया था।पांण्डेय सुरेन्द्र,प्राचार्य जो शांति निकेतन तथा क्लेवलैंड,अमेरिका,बटेश्वर नाथ श्रीवास्तव,लखनऊ तथा इटली तथा बिरेश्वर भट्टाचार्जी,पटना तथा इस्ताम्बुल,तुर्की विदेश से कला शिक्षा प्राप्त कर आर्ट कॉलेज में अपना योगदान टीचर के रूप में दिया था।यह सभी ऊर्जा से भरपूर थे।क्रिएटिव आर्ट  में कुछ करना चाहते थे।एक कलाकार के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे।पटना आर्ट कॉलेज से निकलने के बाद रोजगार प्राप्त हो जाए पहले यही सोंच, समझ थी।आगे चलकर क्रिएटिव आर्ट कर भी जिया जा सकता है यह समझ हुयी।मुश्किल तो था पर एक कलाकार की पहचान उसके काम से हो यह तो सभी चाहते हैं।एक कोशिश की गयी।प्रयास हुए।सफल भी हुए।
उस जमाने में पुराने कला संगठन जो थे पर बन्द पड़े थे।कोई कला संगठन सक्रीय नहीं था।अनिश्चितता थी।राज्य में छोटी बड़ी गतिविधियां वर्षों से होती रहीं है।
समाज किसी एक के प्रयास से विकसित नहीं होता।
सबों का सहयोग होता है।
वर्तमान माहौल में क्या किया जाए चाय की दुकान,नुक्कड़ों पर घंटो रोज हम सभी विमर्श करते थे?पाण्डेय सुरेन्द्र,प्राचार्य के घर पर 2,ईस्ट गार्डिनर रोड, पटना में रोज हम सभी उनसे मिलते थे।
कला पर चर्चा होती थी।
1970-71 में एम. एफ. हुसैन साहब पटना आर्ट कॉलेज में अपने चित्रों तथा शार्ट फिल्म का प्रदर्शन किया था जिसने हमें समकालीन कला आंदोलन से जुड़ने को प्रेरित किया।
1974 में जयप्रकाश नारायण सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में मैंने नुक्कड़ चित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया था।इस प्रदर्शनी के आयोजन में प्रमोद कुमार,बिनोद कुमार सिंह ने मेरा साथ दिया था।पहले दिन लखनऊ स्वीट हाउस कार्नर,पटना में अनिल कुमार सिन्हा,प्रमोद कुमार,बिनोद कुमार सिंह के बनाये चित्र प्रदर्शित किए गए थे।
सभी मित्रों की बेचैनी थी की कैसे राष्ट्रीय स्तर पर अपने आप को प्रोजेक्ट किया जाए?रास्ता ढूंढ रहे थे।
पटना आर्ट सोसाइटी,शिल्पी संघ तथा शिल्प कला परिषद् बिहार की पुरानी कला संस्थायें थी जो बंद 
पड़ी थी।युवा कलाकार कोई मंच चाहते थे।
बिजय चन्द प्रसाद,अशोक तिवारी ने बिरला अकादेमी,कोलकाता में ग्रुप "अब" के नाम से आर्ट शो किया।सबों को नाम पसंद आया।ग्रुप "अब"बना।साझा नेतृत्व था।सफल रहा।
बाद में कई नए संगठन,समूह बने।यह सिलसिला चल पड़ा।
1970 से 1980 का काल खंड बिहार समकालीन कला जगत के लिए बड़े बदलाव के लिए याद किया जाएगा।
टीचर्स,छात्र साथ साथ सृजन में लगे थे।संघर्ष कर रहे थे।
ललित कला अकादेमी,नई दिल्ली की राष्ट्रीय प्रदर्शनी में हमारी उपस्थिति नहीं थी।कलाकारों की जिज्ञासा,कुछ नया करने की ललक,अपनी पहचान की तलाश ने हमें उत्प्रेरित किया।गज़ब की ऊर्जा थी सबों में।ग्रुप "अब" की बड़ी प्रदर्शनी 1981 में सिन्हा लाइब्रेरी,पटना के परिसर में लगी थी।प्रदर्शनी का उदघाटन तत्कालीन उप शिक्षा मंत्री कुमुद रंजन झा ने किया था।कार्यक्रम की अध्यतता प्रो.डॉ कुमार विमल प्रसिद्ध साहित्यकार तथा बाद में बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष बने थे ने किया  था।
शिल्प कला परिषद् के बैनर से भी एक शो किया गया था जिसमें लगभग सभी कलाकार ग्रुप "अब" के ही थे ताकि संस्था सक्रीय हो सके।
उस समय के प्रेस के कुछ कतरन संलग्न है।

बिहार के कलाकारों ने अपनी पहचान बनाई।
अनिल कुमार सिन्हा,बिजय चंद प्रसाद,अशोक तिवारी,सिकंदर हुसैन,शैलेंद्र कुमार,अजय चौधरी,संजीव सिन्हा,शांभवी,पी.राजीवनयन,राजेंद्र गुप्ता,नीलम सिन्हा,आभा सिन्हा,अनिल सिन्हा-अहमदाबाद,राजन गुप्ता,अजीत दुबे, प्रमोद कुमार,मो.इलियास की भूमिका मत्वपूर्ण रही।सबों ने अपना पैसा,श्रम,ज्ञान लगाया।एक रास्ता बनाया।सभी कलाकार भाई समकालीन कला को देश,दुनियाँ से जोड़ने में सहायक रहे।
कलाकार राज्य से बाहर भारी संख्या में निकलने लगे।
देश,विश्व समकालीन कला से जुड़े।यह सिलसिला बना रहे।हमारे सभी साथी आज भी संघर्षरत हैं।
कुछ नया करने का उत्साह,जुनून जारी है।
आज के युवा कलाकार हमारे सपने को पूरा कर रहे हैं।यह देख कर गर्व होता है।खुशी होती है।
बिहार के सभी कलाकारों,कला प्रेमियों को हार्दिक बधाई।

*अनिल कुमार सिन्हा
ग्रुप "अब" का साथी।
वरीष्ठ कलाकार।
03 जनवरी 2022.

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