कबीर का एक दोहा है-
कबीर बादल प्रेम का,हम पर बरप्या आई।
अंतरि भीगी आत्मा,हरी भई बनराई।।
डगलस को बचपन की यादें,अपने परिवेश,पुराने दरभंगा के राजघराने के किले,साज सज्जा,कपडे के झालर,छत से लटकते पंखे,डोरी, कार्पेट्स-दरी,साधु संत,अवघड़,नागा साधुओं ने रोमांचित,प्रभावित किया है। शिव भक्त विद्यापति के भक्ति गीत।जानकी बल्लभ शास्त्री जो इनके शहर मुजफ्फरपुर से आते हैं के साहित्य।मिथिला क्षेत्र के बाबा नागार्जुन का प्रभाव यायावरी/खानाबदोश की तरह घूमने की प्रबृत्ति इन्हें विरासत में मिली है।अपने पूर्वजों के संस्कार ने इन्हें समृद्ध किया है।यही कारण है कि कलाकर्म के लिए यह 28 देशों का भ्रमण इतने कम समय,उम्र में अपने खुद के संसाधनों से पूरा कर लिया।यह बड़ी बात है।
अंतर्राष्ट्रीय समूह,एकल प्रदर्शनी,आर्ट फेयर,बेनाले जैसे आर्ट शोज में यह मिलान इटली,स्पेन,साउथ कोरिया,नॉर्वे,अबु धाबी,कतर जैसे देशों में अपनी कलाकृतियां प्रदर्शित करते रहते हैं।। दिल्ली,मुम्बई,अहमदाबाद,वाराणसी, अमृतसर शहरों में इनके चित्र दर्शको के सम्मुख रखे गए हैं।डगलस एक विचारक हैं।सोंचते हैं उन विषयों पर,उपलब्ध संसाधनों पर जो इन्हें पसंद है।उपलब्ध माध्यमों और तकनीक के द्वारा कैसे तस्बीरों में उन तत्वों का प्रयोग करें?
डगलस के चित्रों के माध्यम मिक्स्ड मीडिया है।कैनवास पर मोती,कारपेट्स-दरी और उसके धागे,इंडस्ट्रियल वेस्ट कटिंग,फोटो प्रिन्ट्स,बिंदी,मंगल सूत्र तथा उसके धागे है।रंगों में ऐक्रेलिक कलर्स,पेंसिल,स्केचपेन और प्योर गोल्ड कैनवास पर लगाते हैं।
डगलस अपनी तस्बीरों में रंगों का प्रयोग सीमित रखतें हैं।ब्लैक,ब्लू,ब्राउन के बीच छोटे छोटे बीड्स अलग अलग रंगों में सितारों की तरह दिखते हैं।कही कही रेड,येलो के पैच तस्बीरों को गति प्रदान करते हैं।पहाड़,झरने सी आकृतियाँ दिखती हैं।इनके चित्रों के फैब्रिक्स के टेक्सचर,धागों की डोर का फैलाव,अंदर से ओवरलैप होते रंग,धागे रोमांच की अनुभूति कराती हैं।
गोल्ड चित्रों में लगाते हैं जिसका मकसद समाज में रिश्तों की पवित्रता,वैल्यू का ट्रान्सफर आगे की पीढ़ी को करना हमारी परंपरा है को डर्सगता है।सह अपनी बहू को सोने के गहने देती है जो आगे की पीढ़ी को हस्तांतरित होती रहती है।डगलस की सोंच रिश्तों की वैल्यू,प्यूरिटी को अपने चित्रों के माध्यम से दिखाना चाहते हैं।इसी कड़ी में महिताओं के पवित्र मंगल सूत्र के धागे,मोती को कैनवास पर बड़े ही करीने से चिपकाते हैं।फोटो प्रिंट्स के छोटे छोटे टुकड़े को ऐसे चिपकाया जाता है जो चित्रों में समा जाता है।घुलमिल जाता हैं।महीन रेंडरिंग करते हैं ताकि चित्र अपने में समेट लें आकृतियों को जो फोटो प्रिंट्स में हैं।फोटो प्रिंट्स भीड़ भाड़,पुराने किले, राजाओं के महल ,छठ घाट जैसी जगहों के होते हैं।इन चित्रों के पीछे भी इनकी सोंच प्यूरिटी ऑफ़ लाईफ,सोसाइटी,प्रेम है।
कलाकार अपनी सोंच को चित्रों के माध्यम से दर्शकों से संवाद करता है।अपनी बातें रखता है।जनता,समाज उसे देखे,समझे,आनंद लें,आलोचना करें उसपर निर्भर करता है।कलाकार ने अपनी बात रख दी है।
ए.के.डगलस के चित्रों का आनंद लें।
*अनिल कुमार सिन्हा
चर्चित चित्रकार,कला समीक्षक।